वाराणसी: शिव नगरी काशी के हरिश्चंद्र घाट पर सोमवार को अनूठी परंपरा के तहत चिता की राख से होली खेली गई। यह अनोखी होली हर साल फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को मनाई जाती है, जिसे मसान की होली के नाम से जाना जाता है। इस खास मौके पर साधु-संतों और नागा संन्यासियों के साथ दुनियाभर से आए सैलानियों ने इस अद्भुत त्योहार का आनंद लिया।
इस वर्ष मसान की होली देखने के लिए 20 देशों से करीब 5 लाख पर्यटक वाराणसी पहुंचे। शोभायात्रा के दौरान घोड़े और रथ पर सवार होकर संत-नागा संन्यासी हरिश्चंद्र घाट पहुंचे। शोभायात्रा के 2 किलोमीटर के मार्ग में जगह-जगह कलाकारों द्वारा शिव तांडव प्रस्तुत किया गया। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं अदृश्य रूप से अपने गणों के साथ चिता भस्म की होली खेलने यहां आते हैं।
मसान की होली का ऐतिहासिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव गहरे ध्यान में चले गए थे, जिससे संसार का संतुलन बिगड़ने लगा। इसी दौरान राक्षस तारकासुर का आतंक बढ़ गया, जिसे शिवपुत्र ही पराजित कर सकता था। तब देवराज इंद्र के निर्देश पर कामदेव ने शिवजी की तपस्या भंग करने का प्रयास किया, जिससे क्रोधित होकर शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया।
बाद में शिवजी ने माता पार्वती से विवाह किया और फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन माता पार्वती को पहली बार काशी लाए। इस अवसर पर काशीवासियों ने शिव-पार्वती के साथ रंगों की होली खेली, लेकिन शिव के गण (भूत-प्रेत, अघोरी, नागा साधु) इस आयोजन में शामिल नहीं हो सके। गणों के अनुरोध पर अगले दिन शिवजी ने मणिकर्णिका घाट पर भस्म (चिता की राख) से होली खेली। तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
शोभायात्रा के साथ शुरू हुआ उत्सव
रंगभरी एकादशी के दिन शिव-पार्वती की शोभायात्रा पूरे शहर में निकाली जाती है, जिसमें भक्तगण रंग उड़ाकर उल्लास मनाते हैं। अगले दिन सभी लोग बाबा विश्वनाथ से अनुमति लेकर मणिकर्णिका घाट पर पहुंचते हैं और वहां चिता भस्म से होली खेलते हैं। इस दौरान विशेष रूप से अघोरी, नागा साधु और शिवभक्त इस आयोजन में भाग लेते हैं।
अदृश्य रूप में शिव की उपस्थिति का विश्वास
मान्यता है कि होली के इस दिन भगवान शिव अदृश्य रूप से मणिकर्णिका घाट पर आते हैं और अपने गणों के साथ चिता भस्म से होली खेलते हैं। कहा जाता है कि इस दौरान भूत-प्रेत, यक्ष और गंधर्व भी इस आयोजन में शामिल होते हैं, लेकिन उन्हें देख पाना संभव नहीं होता।
मसान की होली के दौरान घाट पर भारी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ते हैं। इस वर्ष भी करीब 5 लाख से अधिक सैलानी 20 देशों से वाराणसी पहुंचे और इस अनोखी होली का हिस्सा बने। भक्तों और पर्यटकों के उत्साह के बीच पूरे घाट पर भक्ति और उल्लास का माहौल बना रहा।