नई दिल्ली: एक नए अध्ययन में बताया गया है कि भारत को 2030 तक अपनी बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों पर निर्भर रहना होगा। अध्ययन के अनुसार, भारत को 600 गीगावाट (GW) अतिरिक्त बिजली की आवश्यकता होगी, जिससे उत्पादन लागत 6-18 पैसे प्रति यूनिट तक कम हो सकती है और 42,000 करोड़ रुपये तक की बचत हो सकती है। साथ ही, इस बदलाव से लगभग एक लाख अतिरिक्त नौकरियां भी पैदा होने की संभावना है।
अक्षय ऊर्जा का बढ़ता महत्व: ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) द्वारा किए गए इस अध्ययन में 2030 तक हर 15 मिनट में भारत की बिजली प्रणाली के प्रेषण का विश्लेषण किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, सौर ऊर्जा 377 GW के साथ सबसे बड़ा योगदानकर्ता होगी, इसके बाद पवन ऊर्जा (148 GW), जल विद्युत (62 GW), और परमाणु ऊर्जा (20 GW) का स्थान होगा।
चुनौतियां और सरकार की योजना: अध्ययन में बताया गया कि स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ने में भूमि अधिग्रहण, ग्रिड कनेक्टिविटी, आपूर्ति श्रृंखला बाधाओं जैसी चुनौतियां होंगी। विद्युत और नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने कहा कि भारत 2070 तक नेट-ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के अध्यक्ष घनश्याम प्रसाद ने भी सस्ती ऊर्जा उत्पादन और वितरण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि यह उद्योग और विकास को गति देने में मदद करेगा।
भारत की स्वच्छ ऊर्जा यात्रा उल्लेखनीय रही है- 2014 में 76 GW से बढ़कर 2025 में 220 GW गैर-जीवाश्म क्षमता तक पहुंच गई है। इस अध्ययन के आधार पर, भारत को 2030 तक अपने ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक ठोस रणनीति अपनानी होगी, जिसमें केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयासों की जरूरत होगी।