मुंबई: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे ने गंगा नदी की स्वच्छता और धार्मिक आस्थाओं को लेकर तीखे सवाल उठाए हैं। मनसे की 19वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए ठाकरे ने दावा किया कि भारत में कोई भी नदी वास्तव में स्वच्छ नहीं है और गंगा नदी की सफाई के दावों पर संदेह जताया।
कार्यक्रम के दौरान ठाकरे ने बताया कि हाल ही में मनसे नेता बाला नंदगांवकर महाकुंभ से पवित्र जल लेकर आए थे, लेकिन उन्होंने स्वयं उस जल को पीने से मना कर दिया। इस पर सवाल उठाते हुए ठाकरे ने कहा, "मैंने सोशल मीडिया पर गंगा नदी की स्थिति के बारे में कई वीडियो देखे हैं, जहां लोग गंगा में नहाते, शरीर खुजलाते और गंदगी करते नजर आते हैं। ऐसी स्थिति में उस जल को पीना मेरे लिए असंभव है।"
राज ठाकरे ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय से गंगा की सफाई को लेकर किए जा रहे दावों पर भी कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, "जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तभी से मैं सुन रहा हूं कि गंगा जल्द ही साफ हो जाएगी, लेकिन आज तक स्थिति जस की तस बनी हुई है। अब समय आ गया है कि हम इस मिथक से बाहर निकलें और वास्तविकता को स्वीकार करें।"
मनसे प्रमुख ने धार्मिक आस्था और अंधविश्वास के अंतर पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, "अगर लोग अपने पापों से मुक्त होने के लिए प्रयागराज में गंगा स्नान करते हैं, तो क्या सच में वे अपने पापों से मुक्त हो सकते हैं? यह विचार करने योग्य विषय है। हमें विश्वास और अंधविश्वास के बीच अंतर समझना होगा।"
ठाकरे ने भारत और विदेशों में नदियों के प्रति दृष्टिकोण के अंतर पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, "विदेशों में नदियां साफ-सुथरी होती हैं, लेकिन वहां नदियों को माता नहीं माना जाता। हमारे देश में नदियों को माता मानकर उनकी पूजा तो की जाती है, लेकिन उनकी स्वच्छता का ध्यान नहीं रखा जाता। लोग नदियों में नहाते हैं, कपड़े धोते हैं और जो चाहें करते हैं। यह कहां तक उचित है?"
कोविड-19 महामारी का जिक्र करते हुए ठाकरे ने कहा, "अभी कुछ समय पहले ही कोविड-19 महामारी के दौरान लोग मास्क पहनकर घूम रहे थे और अब वही लोग गंगा में स्नान कर रहे हैं। क्या इस तरह की श्रद्धा का कोई मतलब है? आखिर हमें कब तक अंधविश्वास के नाम पर वास्तविकता से मुंह मोड़ना पड़ेगा?"
ठाकरे के इस बयान के बाद राजनीतिक और धार्मिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। जहां कुछ लोग उनके विचारों से सहमति जता रहे हैं, वहीं कुछ ने इसे धार्मिक आस्था का अपमान करार दिया है। अब देखना यह होगा कि ठाकरे के इस बयान पर आगे क्या प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं।