इटावा में बन रहे केदारेश्वर महादेव मंदिर को लेकर विवाद, मुख्य पुजारी ने दी सफाई

  


इटावा: उत्तर प्रदेश के इटावा में निर्माणाधीन केदारेश्वर महादेव मंदिर को लेकर उठे विवाद के बीच मुख्य पुजारी उमाशंकर ने स्पष्ट किया है कि यह मंदिर उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर की प्रतिकृति नहीं है। उन्होंने बताया कि इसका डिज़ाइन उत्तर और दक्षिण भारत की स्थापत्य शैलियों का मिश्रण है। मंदिर के भीतर स्थित शिवलिंग की आकृति और आकार भी भिन्न है, हालांकि बाहरी स्वरूप 80 फीसदी केदारनाथ जैसा दिखाई देता है।  

मंदिर का स्वरूप और निर्माण प्रक्रिया 

मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही 10 फुट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्थित काले रंग के नंदी की प्रतिमा श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। इस मंदिर का निर्माण समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव करवा रहे हैं और इसमें भव्य शालिग्राम शिला नेपाल से लाकर स्थापित की गई है। मंदिर निर्माण का कार्य आंध्र प्रदेश की एक कंपनी कर रही है, जो कई पीढ़ियों से मंदिरों के निर्माण में सक्रिय है। मंदिर की मुख्य संरचना उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर जैसी है, लेकिन पूरा परिसर तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर की प्रतिकृति होगा।  

केदारनाथ मंदिर के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए ऊंचाई रखी गई कम

इटावा के केदारेश्वर महादेव मंदिर का गर्भगृह दक्षिण भारतीय शैली में अधिक ऊंचा बनाया गया है, जो उत्तर और दक्षिण भारतीय स्थापत्य का संगम प्रस्तुत करता है। इसकी कुल ऊंचाई 84 फुट है, जो केदारनाथ मंदिर की ऊंचाई (85 फुट) से एक इंच कम रखी गई है। यह अंतर उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर के प्रति सम्मान व्यक्त करने के लिए रखा गया है। मंदिर के शिखर पर 12 फुट ऊंचा लकड़ी का 'शिखरम्' बनाया गया है, और गर्भगृह में बजने वाले शंख, घंटी व डमरू की गूंज पूरे परिसर में सुनाई दे, इसके लिए विशेष संरचना तैयार की गई है।  

मंदिर निर्माण में उपयोग किए गए विशेष ग्रेनाइट पत्थर

अखिलेश यादव ने 7 मार्च 2021 को मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया था। मंदिर का निर्माण ‘कृष्ण पुरुष शिला’ नामक खास ग्रेनाइट पत्थर से किया जा रहा है, जो केवल तमिलनाडु के कन्याकुमारी में पाया जाता है। यह पत्थर दुनिया के सबसे मजबूत पत्थरों में से एक माना जाता है, जिसकी उम्र तीन लाख वर्ष तक हो सकती है। मंदिर के निर्माण में कन्याकुमारी से आए 25 कुशल शिल्पकारों की टीम काम कर रही है, जिनमें मुत्तु गणपति उर्फ बाला और उमाशंकर जैसे अनुभवी शिल्पकार शामिल हैं। ये वही परिवार है, जिसने मशहूर तमिल कवि तिरुवल्लुवर की विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा का निर्माण किया था।  

इस भव्य मंदिर के निर्माण से इटावा में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, लेकिन इसके डिज़ाइन को लेकर उठे विवाद पर मंदिर प्रशासन ने स्पष्ट कर दिया है कि यह केदारनाथ मंदिर की नकल नहीं है, बल्कि भारतीय स्थापत्य कला का एक अनूठा मिश्रण है।

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