श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर न्यायिक अकादमी ने शनिवार को मूमिनाबाद, श्रीनगर में उच्च न्यायालय के बेंच सचिवों, डिजिटलीकरण अधिकारियों, कर्मचारियों और श्रीनगर विंग के रीडरों के लिए 'डिजिटाइजेशन' पर एक दिवसीय रिफ्रेशर कार्यक्रम का आयोजन किया। यह कार्यक्रम जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान के संरक्षण में आयोजित किया गया, जो जम्मू-कश्मीर न्यायिक अकादमी के मुख्य संरक्षक भी हैं। कार्यक्रम का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों को डिजिटल उपकरणों, नई तकनीकों और कार्यप्रणाली के बारे में व्यावहारिक जानकारी और प्रशिक्षण प्रदान करना था, जिससे न्यायिक प्रणाली को अधिक प्रभावशाली और कागज रहित बनाया जा सके।
तकनीकी सत्र का आयोजन और मुख्य बिंदु
रिफ्रेशर कार्यक्रम के पहले तकनीकी सत्र की अध्यक्षता सीपीसी (सेंट्रल प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर) फैयाज अहमद कुरैशी ने की। उन्होंने अपने संबोधन में ई-कोर्ट के कामकाज, भविष्य के उन्नयनों और डिजिटलीकरण के महत्व पर जोर दिया। कुरैशी ने कहा कि न्यायालयों को पूरी तरह से कागज रहित बनाने के लिए नई प्रणाली को अपनाने की आवश्यकता है और इसमें आने वाली चुनौतियों और प्रतिरोध को कम करने के लिए रणनीतियों पर काम करना जरूरी है। उन्होंने बताया कि डिजिटल प्रणाली न केवल कामकाज को आसान बनाएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित होगी।
उन्होंने ई-कोर्ट प्रणाली के भविष्य के दृष्टिकोण और अगले चार वर्षों में होने वाले संभावित परिवर्तनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस दौरान उन्होंने न्यायिक अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए डिजिटल डिवाइड, क्षमता निर्माण और नई तकनीक के प्रभावी उपयोग पर चर्चा की।
डिजिटल प्रबंधन प्रणाली पर व्यावहारिक प्रदर्शन
कार्यक्रम के दौरान, डेवलपर तजामुल हुसैन ने न्यायालयों में उपयोग हो रही केस इंफॉर्मेशन सिस्टम (CIS 1.0) पर व्यावहारिक प्रदर्शन दिया। उन्होंने अदालतों में मामलों की फाइलिंग, पंजीकरण, कैविएट और दस्तावेज़ फाइलिंग के साथ-साथ केस कार्यवाही और ई-कोर्ट सेवाओं को विस्तार से समझाया। तजामुल ने अदालतों में प्रमाणित प्रतियां जारी करने और डिजिटल दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली के विभिन्न पहलुओं को भी दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।
वरिष्ठ सिस्टम अधिकारी उजैर नजीर ने दस्तावेज़ प्रबंधन प्रणाली (DMS) के बारे में गहन जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि डीएमएस अदालतों में डिजिटल दस्तावेजों के भंडारण और प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इस प्रणाली के माध्यम से केस फाइलों का प्रबंधन, ऑनलाइन दस्तावेज़ीकरण और त्वरित जानकारी साझा करने की सुविधा प्रदान की जाती है, जिससे अदालतों के कामकाज में पारदर्शिता और गति आएगी।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ऑनलाइन सुनवाई पर प्रशिक्षण
तीसरे सत्र के दौरान, फैयाज अहमद कुरैशी, वसीम हैदर खान (वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी), उजैर नजीर और तजामुल हुसैन ने संयुक्त रूप से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म जैसे ज़ूम और अन्य डिजिटल उपकरणों के उपयोग पर प्रशिक्षण दिया। उन्होंने बताया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायालयों की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित किया जा सकता है, विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में सुनवाई के लिए यह प्रणाली बेहद उपयोगी साबित हो रही है।
उन्होंने यह भी बताया कि डिजिटाइजेशन प्रक्रिया न्यायपालिका को अधिक पारदर्शी, कुशल और पर्यावरण अनुकूल बनाने में सहायक होगी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायाधीश, अधिवक्ता और पक्षकार अपनी भौगोलिक सीमाओं के बावजूद अदालत की कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं, जिससे न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी आएगी।
डिजिटलीकरण के महत्व पर जोर: कार्यक्रम के दौरान, सभी विशेषज्ञों ने इस बात पर बल दिया कि न्यायालयों में डिजिटाइजेशन केवल समय की मांग ही नहीं, बल्कि एक आवश्यक बदलाव भी है। इससे न केवल न्यायालय के कामकाज को तेज और पारदर्शी बनाया जा सकेगा, बल्कि कागज रहित न्यायालय प्रणाली से पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकेगा।
फैयाज अहमद कुरैशी ने कहा कि न्यायिक प्रणाली में डिजिटलीकरण से न केवल मामलों के निपटारे में तेजी आएगी, बल्कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता भी बढ़ेगी। उन्होंने कर्मचारियों को प्रेरित किया कि वे नई तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार रहें और अदालती प्रक्रियाओं को सरल बनाने में अपना योगदान दें।