जम्मू: ग्रामीण विकास और पंचायत राज पर बनी स्थायी समिति ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बिना किसी देरी के पंचायत चुनाव कराने पर जोर दिया है। समिति का कहना है कि चुनाव न होने के कारण केंद्र सरकार से मिलने वाली करोड़ों रुपये की वित्तीय सहायता रुकी हुई है, जिससे ग्रामीण विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायत चुनाव हर पांच साल में कराना अनिवार्य है। संविधान के अनुच्छेद 243E (3) के अनुसार, किसी पंचायत का चुनाव उसकी अवधि समाप्त होने से पहले या विघटन के छह महीने के भीतर संपन्न होना चाहिए। समिति ने पंचायत चुनावों की देरी को संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी बताते हुए इसे उच्चतम स्तर पर उठाने की सिफारिश की है।
समिति के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में कुल 4,291 ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन इनमें से केवल 442 कार्यशील हैं, जबकि लद्दाख में 193 पंचायतों में से सिर्फ 23 पंचायतें ही सक्रिय हैं। भारतनेट योजना के तहत 1,115 पंचायतों को ब्रॉडबैंड सेवा के लिए तैयार किया गया है, लेकिन पंचायत चुनाव न होने से इस योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
इसके अलावा, समिति ने यह भी पाया कि जम्मू-कश्मीर में 827 पंचायतें अब तक पंचायत भवन से वंचित हैं। 2022-23 में 500 नए पंचायत भवनों के निर्माण को मंजूरी मिली थी, लेकिन केवल 10 का निर्माण हो सका। इसी तरह, 2023-24 में भी 500 भवनों को मंजूरी दी गई, लेकिन अब तक सिर्फ 30 ही बनाए गए हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत मजदूरी और सामग्री का भुगतान भी लंबित है। जम्मू-कश्मीर में 15 फरवरी, 2025 तक मजदूरी के 137.26 करोड़ रुपये और सामग्री के 137.41 करोड़ रुपये बकाया थे।
स्थायी समिति ने कहा कि केंद्र सरकार की योजनाओं की निगरानी के लिए बनी जिला विकास समन्वय और निगरानी समितियों (DISHA) की बैठकें भी नियमित रूप से नहीं हो रही हैं। 2023-24 में केवल 8 बैठकों का आयोजन हुआ, जबकि 2024 में अब तक 11 बैठकें हुई हैं। समिति ने पंचायत चुनाव जल्द कराने और ग्रामीण विकास कार्यों को गति देने की सिफारिश की है।