कुल्लू: कुल्लू घाटी में होली का त्योहार बड़े उत्साह और पारंपरिक रंग में डूबा रहा। अखाड़ा बाजार, सुल्तानपुर, ढालपुर, सरवरी और गांधी नगर में पारंपरिक झंडों और स्थानीय बाजा (ऑर्केस्ट्रा) के साथ जुलूस निकाले गए, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। भगवान रघुनाथ के मंदिर में मुख्य समारोह आयोजित हुआ, जहां लोगों ने देवता के साथ होली खेली और पारंपरिक गीत गाए।
कुल्लू में होली दो दिन तक मनाई जाती है और इसे "छोटी होली" कहा जाता है, जो अक्सर अन्य स्थानों की तुलना में एक दिन पहले पड़ती है। यहां के त्योहार की तुलना वृंदावन और मथुरा की होली से की जाती है, क्योंकि इसमें कई पारंपरिक अनुष्ठान जुड़े होते हैं। बसंत पंचमी से शुरू हुआ यह उत्सव होली तक चरम पर पहुंचता है।
होली से आठ दिन पहले "होलाष्टक" के दौरान पूरे शहर में उत्सव का माहौल बन जाता है। कुल्लू की होली का खास आकर्षण "फाग" उत्सव है, जो रघुनाथपुर में आयोजित होता है। इसमें भगवान रघुनाथ की रंगीन पालकी निकाली जाती है और होलिका दहन के प्रतीक रूप में चिता जलाई जाती है। महंत झंडा प्राप्त करने के लिए जलती हुई चिता के पार छलांग लगाते हैं, जिसे शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है।
कुल्लू की होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा एक आध्यात्मिक उत्सव भी है। इस दौरान लोग देवताओं की पूजा कर समृद्धि और खुशी की कामना करते हैं। वहीं, ढालपुर में बड़ी संख्या में युवाओं ने डीजे की धुनों पर नृत्य कर इस पर्व का आनंद लिया।